यथाशक्ति संबल प्रदान करें
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दिव्यं भौमं चान्तरीक्षं वित्तमच्युतनिर्मितम् ।
तत्सर्वमुपयुञ्जान एतत्कुर्यात्स्वतो बुध: ॥

(भागवत महापुराण 7.14.7)

बुद्धिमान पुरुष वर्षा आदि के द्वारा होने वाले अन्न, पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले स्वर्ण , अकस्मात् प्राप्त होने वाले द्रव्य, तथा सब प्रकार के धन भगवान के ही दिए हुए हैं , ऐसा समझकर प्रारब्ध के अनुसार उनका उपभोग करता हुआ संचय नहीं करता, अपितु उन्हें साधु सेवा एवं अन्य आध्यात्मिक कार्यों में लगाता है।
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दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।

(श्रीमद्भगवद्गीता 17.20)

“दान देना ही कर्तव्य है” – इस भाव से जो दान , योग्य देश, काल को देखकर, योग्य पात्र (व्यक्ति) को दिया जाता है, जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है, वह दान सात्त्विक माना गया है।।

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श्रीमद् भागवत रसिक कुटुंब भागवत महापुराण के अंतर्गत आने वाले विभिन्न स्त्रोत्रों के पठन तथा मनन हेतु निःशुल्क ऑनलाइन कक्षाएं प्रदान कर सनातन धर्म के प्रचार अभियान में निरंतर कार्यरत है।

आश्वस्त रहें , आपके द्वारा दिए गए श्रीदान का उपयोग सामाजिक कार्यों तथा कृष्ण भक्तों के आध्यात्मिक विकास के लिए किया जायेगा।
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से आरंभ हुए इस ज्ञान यज्ञ में आप भी सहभागी होकर भगवान की कृपा के पात्र बन सकते हैं।

🌸ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🌸

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